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शेर
वतन की सर-ज़मीं से इश्क़-ओ-उल्फ़त हम भी रखते हैं
खटकती जो रहे दिल में वो हसरत हम भी रखते हैं
जोश मलसियानी
शेर
तमन्ना जो न रखता हो झुकाए वो नज़र किस से
उसे शादी ओ ग़म किस का उसे सूद ओ ज़रर किस से
तस्वीर देहलवी
शेर
जो दिल-ओ-ईमाँ न दें नज़राँ बुतों को देख कर
या ख़ुदा वो लोग इस दुनिया में आए किस लिए
दत्तात्रिया कैफ़ी
शेर
कुफ्र-ओ-इस्लाम में तौलें जो हक़ीक़त तेरी
बुत-कदा क्या कि हरम संग-ए-तराज़ू हो जाए
मुनीर शिकोहाबादी
शेर
भरी जो हसरत-ओ-यास अपनी गुफ़्तुगू में है
ख़ुदा ही जाने कि बंदा किस आरज़ू में है