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शेर
लड़खड़ाना भी है तकमील-ए-सफ़र की तम्हीद
हम को मंज़िल का निशाँ लग़्ज़िश-ए-पैहम से मिला
रविश सिद्दीक़ी
शेर
ज़र्रे ज़र्रे में बिखर जाना है तकमील-ए-हयात
मुझ को ये ज़ेबा नहीं अब ज़ात में सिमटा रहूँ
ज़हीर सिद्दीक़ी
शेर
अभी तकमील-ए-उल्फ़त पर न दिल मग़रूर हो जाए
ये मंज़िल वो है जितनी तय हो उतनी दूर हो जाए
इज़हार रामपुरी
शेर
हैं ये जज़्बात मिरे दर्द भरे दिल के फ़िगार
लफ़्ज़ बन बन के जो अशआ'र तक आ पहुँचे हैं
फ़िगार उन्नावी
शेर
क़ाबिल अजमेरी
शेर
जब फ़स्ल-ए-बहाराँ आती है शादाब गुलिस्ताँ होते हैं
तकमील-ए-जुनूँ भी होती है और चाक गरेबाँ होते हैं
अनवर सहारनपुरी
शेर
ये तेरा दिवाना रात गए मालूम नहीं क्यूँ पहरों तक
आँसू की लकीरों से कितने नक़्श-ए-जज़्बात बनाए है