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शेर
तुम से पहले वो जो इक शख़्स यहाँ तख़्त-नशीं था
उस को भी अपने ख़ुदा होने पे इतना ही यक़ीं था
हबीब जालिब
शेर
फ़क़ीर-ए-शहर भी रहा हूँ 'शहरयार' भी मगर
जो इत्मिनान फ़क़्र में है ताज-ओ-तख़्त में नहीं
अहमद शहरयार
शेर
मिरे सीने में दिल है या कोई शहज़ादा-ए-ख़ुद-सर
किसी दिन उस को ताज-ओ-तख़्त से महरूम कर देखूँ
सरवत हुसैन
शेर
पाया-ए-तख़्त-ए-सुलैमाँ का है शाएर 'मुसहफ़ी'
है उसी के ख़ातिम-ए-दस्त-ए-सुलैमाँ हाथ में