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शेर
दिल-ए-वारफ़्ता-ए-दीदार की अल्लाह रे मह्विय्यत
तसव्वुर में तिरे वो तेरी सूरत भूल जाता है
फ़िराक़ गोरखपुरी
शेर
ख़्वाहिश-ए-दीदार में आँखें भी हैं मेरी रक़ीब
सात पर्दों में छुपा रक्खा है उस के नूर को
इमदाद अली बहर
शेर
था जिन्हें हुस्न-परस्ती से हमेशा इंकार
वो भी अब तालिब-ए-दीदार हैं किन के उन के