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शेर
होता है मुसाफ़िर को दो-राहे में तवक़्क़ुफ़
रह एक है उठ जाए जो शक दैर-ओ-हरम का
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
शेर
मैं ने पूछा कि कोई दिल-ज़दगाँ की है मिसाल
किस तवक़्क़ुफ़ से कहा उस ने कि हाँ तुम और मैं
ख़्वाज़ा रज़ी हैदर
शेर
हुई जिन से तवक़्क़ो ख़स्तगी की दाद पाने की
वो हम से भी ज़ियादा ख़स्ता-ए-तेग़-ए-सितम निकले