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शेर
'बशीर' अब गर्दिश-ए-शाम-ओ-सहर की याद बाक़ी है
कहाँ तक साथ दे सकते ज़मीन-ओ-आसमाँ अपना
बशीरून्निसा बेगम बशीर
शेर
इक दाइमी सुकूँ की तमन्ना है रात दिन
तंग आ गए हैं गर्दिश-ए-शाम-ओ-सहर से हम
शिव रतन लाल बर्क़ पूंछवी
शेर
तर्क-ए-उल्फ़त से मोहब्बत का लिखा मिट न सका
वही अफ़्सुर्दगी-ए-शाम-ओ-सहर आज भी है
सय्यद बासित हुसैन माहिर लखनवी
शेर
बातों में लगाए ही मुझे रखता है ज़ालिम
वअ'दे वही झूटे हैं वही शाम-ओ-सहर रोज़
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
शेर
ज़मानों को उड़ानें बर्क़ को रफ़्तार देता था
मगर मुझ से कहा ठहरे हुए शाम-ओ-सहर ले जा
ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर
शेर
मैं क्या जानूँ क़लक़ क्या चीज़ है पर इतना जानूँ हूँ
मिले है दिल को पहलू में मिरे शाम ओ सहर कोई