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शेर
तस्कीन-ए-दिल-ए-महज़ूँ न हुई वो सई-ए-करम फ़रमा भी गए
इस सई-ए-करम को क्या कहिए बहला भी गए तड़पा भी गए
असरार-उल-हक़ मजाज़
शेर
अजीब कश्मकश है कैसे हर्फ़-ए-मुद्दआ कहूँ
वो पूछते हैं हाल-ए-दिल मैं सोचता हूँ क्या कहूँ
फ़िगार उन्नावी
शेर
तलाश-ए-सूरत-ए-तस्कीं न कर औहाम-हस्ती में
दिल-ए-महज़ूँ बहल सकता नहीं इस नक़्श-ए-बातिल से
मुमताज़ अहमद ख़ाँ ख़ुशतर खांडवी
शेर
है रोज़-ए-पंज-शम्बा तू फ़ातिहा दिला दे
घर तेरे कुश्तगाँ की रूहें न आइयाँ हों
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
शेर
काश सोता ही रहूँ मैं कि नहीं चाहता दिल
हर सहर उठ के रुख़-ए-गब्र-ओ-मुसलमाँ देखूँ