aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "तहज़ीब-ए-इर्तिक़ा"
बड़ा अजीब है तहज़ीब-ए-इर्तिक़ा के लिएतमाम उम्र किसी इक को हम-नवा रखना
अभी काँटों से बचाता हूँ मैं अपना दामनअभी ना-वाक़िफ़-ए-तहज़ीब-ए-गुलिस्ताँ हूँ मैं
ये इर्तिक़ा-ए-बशर की है कौन सी मंज़िलकि इस की ज़द में ख़ुदा भी है काएनात भी है
कोई और तर्ज़-ए-सितम सोचिएदिल अब ख़ूगर-ए-इम्तिहाँ हो गया
अजब जुनून है ये इंतिक़ाम का जज़्बाशिकस्त खा के वो पानी में ज़हर डाल आया
हमेशा दिल हवस-ए-इंतिक़ाम पर रक्खाख़ुद अपना नाम भी दुश्मन के नाम पर रक्खा
ये इंतिक़ाम है या एहतिजाज है क्या हैये लोग धूप में क्यूँ हैं शजर के होते हुए
ये काएनात भी क्या क़ैद-ख़ाना है कोईये ज़िंदगी भी कोई तर्ज़-ए-इंतिक़ाम है क्या
ये इब्तिदा थी कि मैं ने उसे पुकारा थावो आ गया था 'ज़फ़र' उस ने इंतिहा की थी
बे-दिमाग़-ए-ख़जलत हूँ रश्क-ए-इम्तिहाँ ता-कैएक बेकसी तुझ को आलम-आश्ना पाया
ये मरहला भी किसी इम्तिहाँ से कम तो नहींवो शख़्स मुझ पे बहुत ए'तिबार करता है
वो शख़्स अपनी जगह है मुरक़्क़ा-ए-तहज़ीबये और बात है कि क़ातिल उसी का नाम भी है
दिल मिरा दर्द के सिवा क्या हैइब्तिदा ये तो इंतिहा क्या है
तहज़ीब ही बाक़ी है न अब शर्म-ओ-हया कुछकिस दर्जा अब इंसान ये बेबाक हुआ है
बराए-नाम ही सही ब-एहतियात कीजिएदरून-ए-किज़्ब-ओ-इफ़्तिरा सदाक़तें ख़लत-मलत
फ़राज़-ए-दार पे भी मैं ने तेरे गीत गाए हैंबता ऐ ज़िंदगी तू लेगी कब तक इम्तिहाँ मेरा
इंतिहा-ए-मअरिफ़त से ऐ 'शरफ़'मैं ने जो देखा जो समझा कुछ न था
आग थे इब्तिदा-ए-इश्क़ में हमअब जो हैं ख़ाक इंतिहा है ये
ये बातों में नर्मी ये तहज़ीब-ओ-आदाबसभी कुछ मिला हम को उर्दू ज़बाँ से
आदम से बाग़-ए-ख़ुल्द छुटा हम से कू-ए-यारवो इब्तिदा-ए-रंज है ये इंतिहा-ए-रंज
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