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शेर
हमारी ज़िंदगी पर मौत भी हैरान है 'ग़ाएर'
न जाने किस ने ये तारीख़-ए-पैदाइश निकाली है
काशिफ़ हुसैन ग़ाएर
शेर
झूट है सब तारीख़ हमेशा अपने को दुहराती है
अच्छा मेरा ख़्वाब-ए-जवानी थोड़ा सा दोहराए तो
अंदलीब शादानी
शेर
अभी बाक़ी हैं पत्तों पर जले तिनकों की तहरीरें
ये वो तारीख़ है बिजली गिरी थी जब गुलिस्ताँ पर
क़मर जलालवी
शेर
हमारी ज़िंदगी पर मौत भी हैरान है ग़ाएर
न जाने किस ने ये तारीख़-ए-पैदाइश निकाली है
काशिफ़ हुसैन ग़ाएर
शेर
मेरी इक उम्र और इक अहद की तारीख़ रक़म है जिस पर
कैसे रोकूँ कि वो आँसू मिरी आँखों से गिरा जाता है