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शेर
किसी लाशे पे ये बाद-ए-सबा कहती हुई गुज़री
शहीद-ए-इश्क़ है इस के लहू को ताज़ा कहते हैं
शहनवाज़ फ़ारूक़ी
शेर
सुम्बुल को परेशान किया बाद-ए-सबा ने
जब बाग़ में बातें तिरी ज़ुल्फ़ों की चलाईं
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
शेर
कब तक ऐ बाद-ए-सबा तुझ से तवक़्क़ो रक्खूँ
दिल तमन्ना का शजर है तो हरा हो भी चुका
ख़्वाज़ा रज़ी हैदर
शेर
अपनी मिट्टी है कहाँ की क्या ख़बर बाद-ए-सबा
हो परेशाँ देखिए किस किस जगह मुश्त-ए-ग़ुबार
सुरूर जहानाबादी
शेर
यार था गुलज़ार था बाद-ए-सबा थी मैं न था
लाएक़-ए-पाबोस-ए-जानाँ क्या हिना थी मैं न था
बहादुर शाह ज़फ़र
शेर
सुब्ह तक वो भी न छोड़ी तू ने ऐ बाद-ए-सबा
यादगार-ए-रौनक़-ए-महफ़िल थी परवाने की ख़ाक
आसी ग़ाज़ीपुरी
शेर
तुंदी-ए-बाद-ए-मुख़ालिफ़ से न घबरा ऐ उक़ाब
ये तो चलती है तुझे ऊँचा उड़ाने के लिए
सय्यद सादिक़ हुसैन
शेर
न छेड़ ऐ निकहत-ए-बाद-ए-बहारी राह लग अपनी
तुझे अटखेलियाँ सूझी हैं हम बे-ज़ार बैठे हैं
इंशा अल्लाह ख़ान इंशा
शेर
मुझे जब मार ही डाला तो अब दोनों बराबर हैं
उड़ाओ ख़ाक सरसर बन के या बाद-ए-सबा बन कर
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
शेर
गुलचीं बहार-ए-गुल में न कर मन-ए-सैर-ए-बाग़
क्या हम ग़ुबार दामन-ए-बाद-ए-सबा के हैं