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शेर
मिरी क़िस्मत लिखी जाती थी जिस दिन मैं अगर होता
उड़ा ही लेता दस्त-ए-कातिब-ए-तक़दीर से काग़ज़
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
शेर
कुछ ऐसी बन गई तस्वीर उस के दस्त-ए-क़ुदरत से
रहा हैराँ बना कर आप सूरत-आफ़रीं बरसों
बन्द्र इब्न-ए-राक़िम
शेर
चुभेंगे ज़ीरा-हा-ए-शीशा-ए-दिल दस्त-ए-नाज़ुक में
सँभल कर हाथ डाला कीजिए मेरे गरेबाँ पर
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
शेर
उम्र भर रश्क-ए-अदू साथ था कहता क्या हाल
वो मिला भी कभी तन्हा तो मैं तन्हा न हुआ
मुंशी अमीरुल्लाह तस्लीम
शेर
जलेगा दिल तुम्हें बज़्म-ए-अदू में देख कर मेरा
धुआँ बन बन के अरमाँ महफ़िल-ए-दुश्मन से निकलेंगे
मुज़्तर ख़ैराबादी
शेर
दस्त-ए-पुर-ख़ूँ को कफ़-ए-दस्त-ए-निगाराँ समझे
क़त्ल-गह थी जिसे हम महफ़िल-ए-याराँ समझे
मजरूह सुल्तानपुरी
शेर
लहू जिगर का हुआ सर्फ़-ए-रंग-ए-दस्त-ए-हिना
जो सौदा सर में था सहरा खंगालने में गया
अमीर हम्ज़ा साक़िब
शेर
साक़ी के आने की ये तमन्ना है बज़्म में
दस्त-ए-सुबू बुलंद है दस्त-ए-दुआ के साथ
ख़्वाज़ा मोहम्मद वज़ीर
शेर
लम्स-ए-सदा-ए-साज़ ने ज़ख़्म निहाल कर दिए
ये तो वही हुनर है जो दस्त-ए-तबीब-ए-जाँ में था