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शेर
बाग़-ए-बहिश्त से मुझे हुक्म-ए-सफ़र दिया था क्यूँ
कार-ए-जहाँ दराज़ है अब मिरा इंतिज़ार कर
अल्लामा इक़बाल
शेर
की दिल ने दिल-बरान-ए-जहाँ की बहुत तलाश
कुइ दिल-रुबा मिला है न दिल-ख़्वाह क्या करे
मिर्ज़ा जवाँ बख़्त जहाँदार
शेर
मा-सिवा-ए-कार-ए-आह-ओ-अश्क क्या है इश्क़ में
है सवाद-ए-आब-ओ-आतिश दीदा ओ दिल के क़रीब
आलमताब तिश्ना
शेर
दिल जहाँ बात करे दिल ही जहाँ बात सुने
कार-ए-दुश्वार है उस तर्ज़ में कहना अच्छा
अख़्तर हुसैन जाफ़री
शेर
फ़ुर्क़त में कार-ए-वस्ल लिया वाह वाह से
हर आह-ए-दिल के साथ इक अरमाँ निकल गया