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शेर
इब्न-ए-इंशा
शेर
किस तरह कर दिया दिल-ए-नाज़ुक को चूर-चूर
इस वाक़िआ' की ख़ाक है पत्थर को इत्तिलाअ'
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
शेर
चुभेंगे ज़ीरा-हा-ए-शीशा-ए-दिल दस्त-ए-नाज़ुक में
सँभल कर हाथ डाला कीजिए मेरे गरेबाँ पर
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
शेर
दिल है निसार मर्दुमक-ए-चश्म-ए-दोस्त पर
बीमार को है मर्दुम-ए-बीमार से ग़रज़
मुंशी खैराती लाल शगुफ़्ता
शेर
दोनों हों कैसे एक जा 'मेहदी' सुरूर-ओ-सोज़-ए-दिल
बर्क़-ए-निगाह-ए-नाज़ ने गिर के बता दिया कि यूँ
एस ए मेहदी
शेर
सहता रहा जफ़ा-ए-दोस्त कहता रहा अदा-ए-दोस्त
मेरे ख़ुलूस ने मिरा जीना मुहाल कर दिया