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शेर
मादर-ए-दहर उठाती है जो हर दम मिरे नाज़
उस के दामन पे मैं तिफ़लाना मचल जाता हूँ
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
शेर
ये क्या है कि ज़िक्र-ए-ग़म-ए-अय्याम बहुत है
शीशे में अभी तो मय-ए-गुलफ़ाम बहुत है
वफ़ा शाहजहाँ पुरी
शेर
जब कोई फ़ित्ना-ए-अय्याम नहीं होता है
ज़िंदगी का बड़ी मुश्किल से यक़ीं होता है
हबीब अहमद सिद्दीक़ी
शेर
गर्दिश-ए-अय्याम से चलती है नब्ज़-ए-काएनात
वक़्त का पहिया रुका तो ज़िंदगी रुक जाएगी
लतीफ़ शाह शाहिद
शेर
ग़म-ए-अय्याम पे यूँ ख़ुश हैं तिरे दीवाने
ग़म-ए-अय्याम भी इक तेरी अदा हो जैसे
अकबर अली खान अर्शी जादह
शेर
फ़ैज़-ए-अय्याम-ए-बहार अहल-ए-क़फ़स क्या जानें
चंद तिनके थे नशेमन के जो हम तक पहुँचे
हबीब अहमद सिद्दीक़ी
शेर
वतन की ख़ाक से मर कर भी हम को उन्स बाक़ी है
मज़ा दामान-ए-मादर का है इस मिट्टी के दामन में
चकबस्त बृज नारायण
शेर
शब-ए-हिज्राँ क्या सियाही न हुई रोज़-ए-सफ़ेद
ये वरक़ तू ने न ऐ गर्दिश-ए-अय्याम उल्टा