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शेर
ये सारा जिस्म झुक कर बोझ से दोहरा हुआ होगा
मैं सज्दे में नहीं था आप को धोका हुआ होगा
दुष्यंत कुमार
शेर
झूट है सब तारीख़ हमेशा अपने को दुहराती है
अच्छा मेरा ख़्वाब-ए-जवानी थोड़ा सा दोहराए तो
अंदलीब शादानी
शेर
औरों की मोहब्बत के दोहराए हैं अफ़्साने
बात अपनी मोहब्बत की होंटों पे नहीं आई
सूफ़ी ग़ुलाम मुस्ताफ़ा तबस्सुम
शेर
चश्म ओ रुख़्सार के अज़़कार को जारी रक्खो
प्यार के नामे को दोहराओ कि कुछ रात कटे