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शेर
है दौर-ए-फ़लक ज़ोफ़ में पेश-ए-नज़र अपने
किस वक़्त हम उठते हैं कि चक्कर नहीं आता
सय्यद यूसुफ़ अली खाँ नाज़िम
शेर
रात दिन गर्दिश में है पर हो नहीं सकता हनूज़
दौर-ए-दामान-ए-फ़लक इस दौर-ए-दामाँ का हरीफ़
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
शेर
गुल खिलाए न कहीं फ़ित्ना-ए-दौराँ कुछ और
आज-कल दौर-ए-मय-ओ-जाम से जी डरता है
अख़्तर अंसारी अकबराबादी
शेर
दौर-ए-हयात आएगा क़ातिल क़ज़ा के ब'अद
है इब्तिदा हमारी तिरी इंतिहा के ब'अद