aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "नंगे-पाँव"
वहाँ सलाम को आती है नंगे पाँव बहारखिले थे फूल जहाँ तेरे मुस्कुराने से
वक़्त के सहरा में नंगे पाँव ठहरे हो 'सलीम'धूप की शिद्दत यकायक बढ़ न जाए चल पड़ो
सुब्ह सवेरे नंगे पाँव घास पे चलना ऐसा हैजैसे बाप का पहला बोसा क़ुर्बत जैसे माओं की
ऐ जलती रुतो गवाह रहनाहम नंगे पाँव चल रहे हैं
दोपहर की धूप में मेरे बुलाने के लिएवो तिरा कोठे पे नंगे पाँव आना याद है
रंगत उस रुख़ की गुल ने पाई हैऔर पसीने की बू गुलाब में है
हम ने पाई है उन अशआर पे भी दाद 'ज़ुबैर'जिन में उस शोख़ की तारीफ़ के पहलू भी नहीं
नज़र बचा के जो आँसू किए थे मैं ने पाकख़बर न थी यही धब्बे बनेंगे दामन के
तुम ही ने पाँव न रक्खा वगरना वस्ल की शबज़मीं पे हम ने सितारे बिछा के रक्खे थे
यहीं कहीं पे अदू ने पड़ाव डाला थायहीं कहीं पे मोहब्बत ने हार मानी थी
शाम-ए-विदाअ थी मगर उस रंग-बाज़ नेपाँव पे होंट रख दिए जाने नहीं दिया
निकल के जाऊँ कहाँ मैं हिसार-ए-गर्दिश सेसफ़र ने पाँव में ज़ंजीर कर लिया है मुझे
दिल को फाँसा है हर इक उज़्व की तेरे छब नेहाथ ने पाँव ने मुखड़े ने दहन ने लब ने
हिना का रंग ये हरगिज़ नहीं है सच बता ज़ालिमये किस का फूल सा दिल तू ने पाँव से मसल डाला
चले तो पाँव के नीचे कुचल गई कोई शयनशे की झोंक में देखा नहीं कि दुनिया है
ज़िंदगी तू ने मुझे क़ब्र से कम दी है ज़मींपाँव फैलाऊँ तो दीवार में सर लगता है
पाँव बाँधे हैं वफ़ा से जब नेतेज़-रफ़्तार दिखाई दिया हूँ
गुलाबी पाँव मिरे चम्पई बनाने कोकिसी ने सहन में मेहंदी की बाड़ उगाई हो
ये जब्र भी देखा है तारीख़ की नज़रों नेलम्हों ने ख़ता की थी सदियों ने सज़ा पाई
हिजरतों में हूजुरियों के जतनपाँव को दूरियों ने घेरा है
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