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शेर
कभी यूँ भी आ मिरी आँख में कि मिरी नज़र को ख़बर न हो
मुझे एक रात नवाज़ दे मगर इस के बाद सहर न हो
बशीर बद्र
शेर
बरहमन शैख़ को कर दे निगाह-ए-नाज़ उस बुत की
गुलू-ए-ज़ोहद में तार-ए-नज़र ज़ुन्नार बन जाए
हबीब मूसवी
शेर
नज़र है अपनी अपनी शैख़ ने देखा न काबे में
मगर हम ने ख़ुदा को 'जाम' बुत-ख़ाने में देखा है
जाम नवाई बदायुनी
शेर
आ जाएँ वक़्त-ए-नज़अ' तो मैं उन को देख लूँ
अरमान कोई दिल में अब इस के सिवा नहीं
नवाब सैफ अली सय्याफ़
शेर
नवाज़िश पर हैं माइल वो करम-ना-आश्ना नज़रें
नियाज़-ए-इश्क़ काम आ ही गया हंगाम-ए-नाज़ आख़िर