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शेर
मिरा ख़ून-ए-जिगर पुर-नूर बन जाए तो अच्छा हो
तुम्हारी माँग का सिन्दूर बन जाने तो अच्छा हो
अली ज़हीर रिज़वी लखनवी
शेर
मैं नज़र से पी रहा था तो ये दिल ने बद-दुआ दी
तिरा हाथ ज़िंदगी भर कभी जाम तक न पहुँचे
शकील बदायूनी
शेर
नज़र में बंद करे है तू एक आलम को
फ़ुसूँ है सेहर है जादू है क्या है आँखों में
शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम
शेर
ज़माना लाख गुम हो जाए आप अपने अंधेरे में
कोई साहिब-नज़र अपनी तरफ़ से बद-गुमाँ क्यों हो
यगाना चंगेज़ी
शेर
किया बदनाम इक आलम ने 'ग़मगीं' पाक-बाज़ी में
जो मैं तेरी तरह से बद-नज़र होता तो क्या होता