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शेर
आल-ए-अहमद सुरूर
शेर
मिरी ज़िंदगी का महवर यही सोज़-ओ-साज़-ए-हस्ती
कभी जज़्ब-ए-वालहाना कभी ज़ब्त-ए-आरिफ़ाना
फ़ारूक़ बाँसपारी
शेर
कहानी है तो इतनी है फ़रेब-ए-ख़्वाब-ए-हस्ती की
कि आँखें बंद हूँ और आदमी अफ़्साना हो जाए
सीमाब अकबराबादी
शेर
झाड़ कर गर्द-ए-ग़म-ए-हस्ती को उड़ जाऊँगा मैं
बे-ख़बर ऐसी भी इक परवाज़ आती है मुझे
अब्दुल हमीद अदम
शेर
गर्दिश-ए-अय्याम से चलती है नब्ज़-ए-काएनात
वक़्त का पहिया रुका तो ज़िंदगी रुक जाएगी