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शेर
मेरे पहलू में तुम आओ ये कहाँ मेरे नसीब
ये भी क्या कम है तसव्वुर में तो आ जाते हो
ग़ुलाम भीक नैरंग
शेर
सहर होते ही जैसे रेत भर जाती है साँसों में
नसीम-ए-हिज्र तेरे ज़ाइक़े अच्छे नहीं लगते
हसन शाहनवाज़ ज़ैदी
शेर
चमन में ग़ुंचा मुँह खोले है जब कुछ दिल की कहने को
नसीम-ए-सुब्ह भर रखती है बातों में लगा लिपटा