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शेर
जब मैं रोता हूँ तो अल्लाह रे हँसना उन का
क़हक़हों में मिरे नालों को उड़ा देते हैं
वज़ीर अली सबा लखनवी
शेर
क़श्क़ा नहीं पेशानी पे उस माह-जबीं के
अल्लाह ने ये हुस्न के ख़िर्मन को है चाँका