aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "नारा-ए-ऐलान"
हर बार मदद के लिए औरों को पुकाराया काम लिया नारा-ए-तकबीर से हम ने
जब फ़स्ल-ए-गुल आती है सदा देती है वहशतज़ंजीर का ग़ुल नारा-ए-मस्ताना है उस का
आजिज़ी कहने लगी गर हो बुलंदी की तलबदिल झुका दाइरा-ए-ना'रा-ए-तकबीर में आ
हम अपनी नेकी समझते तो हैं तुझे लेकिनशुमार नामा-ए-आमाल में नहीं करते
फिर मशिय्यत से उलझती है मिरी दीवानगीनाला-ए-शब-गीर अश्कों के गुहर काफ़ी नहीं
नाला-ए-बुलबुल-ए-शैदा तो सुना हँस हँस करअब जिगर थाम के बैठो मिरी बारी आई
जब मैं कहता हूँ कि या अल्लाह मेरा हाल देखहुक्म होता है कि अपना नामा-ए-आमाल देख
सच पूछिए तो नाला-ए-बुलबुल है बे-ख़ताफूलों में सारी आग लगाई सबा की है
नाला-ए-बुलबुल से ग़ुंचों के कलेजे फट गएगुल्सिताँ वाले समझते हैं कि गुल ख़ंदाँ हुए
साहब! ये मेरा नामा-ए-तक़दीर देखिएइक शाम-ए-हिज्र इस में कई बार दर्ज है
हिज्र की शब नाला-ए-दिल वो सदा देने लगेसुनने वाले रात कटने की दुआ देने लगे
नाला-ए-बे-सौत ख़ुद बनने लगा मोहर-ए-सुकूतबे-ज़बानी को हमारी अब ज़बाँ से क्या ग़रज़
मुस्तइद हूँ तिरे ज़ुल्फ़ों की सियाही ले करसफ़्हा-ए-नामा-ए-आमाल कूँ काला करने
हैं वो सूफ़ी जो कभी नाला-ए-नाक़ूस सुनावज्द करने लगे हम दिल का अजब हाल हुआ
हम दिखाएँगे तमाशा तुझ को फिर सर्व-ए-चमनदिल से गर सरज़द हमारे नाला-ए-मौज़ूँ हुआ
जिन पे नाज़ाँ थे ये ज़मीन ओ फ़लकअब कहाँ हैं वो सूरतें बाक़ी
शरर-ए-नाला-ए-बुलबुल से लगी उन में आगजो शजर बाग़ में थे फूलने फलने वाले
दावर-ए-हश्र मिरा नामा-ए-आमाल न देखइस में कुछ पर्दा-नशीनों के भी नाम आते हैं
हर एक अहद ने लिक्खा है अपना नामा-ए-शौक़किसी ने ख़ूँ से लिखा है किसी ने आँसू से
लैला का सियह ख़ेमा या आँख है हिरनों कीये शाख़-ए-ग़ज़ालाँ है या नाला-ए-मज्नूँ है
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