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शेर
ज़िंदगी इक ख़्वाब है ये ख़्वाब की ताबीर है
हल्क़ा-ए-गेसू-ए-दुनिया पाँव की ज़ंजीर है
उबैदुल्लह सिद्दीक़ी
शेर
रुख़-ए-रौशन पे उस की गेसू-ए-शब-गूँ लटकते हैं
क़यामत है मुसाफ़िर रास्ता दिन को भटकते हैं
भारतेंदु हरिश्चंद्र
शेर
न छेड़ ऐ निकहत-ए-बाद-ए-बहारी राह लग अपनी
तुझे अटखेलियाँ सूझी हैं हम बे-ज़ार बैठे हैं
इंशा अल्लाह ख़ान इंशा
शेर
मैं तो हर हर ख़म-ए-गेसू की तलाशी लूँगा
कि मिरा दिल है तिरे गेसू-ए-ख़मदार के पास
मुबारक अज़ीमाबादी
शेर
न दे जो बोसा-ए-गेसू न दे जवाब तो दे
बला से जो तुझे देना है दे शिताब तो दे
एलेक्जेंड्रा हेड्डेरली आजाद
शेर
लटकते देखा सीने पर जो तेरे तार-ए-गेसू को
उसे दीवाने वहशत में तिरा बंद-ए-क़बा समझे
सरदार गंडा सिंह मशरिक़ी
शेर
दिल तो दिल अफ़ई-ए-गेसू वो बला है काफ़िर
इस का काटा कोई अफ़ई भी न पानी माँगे
सययद मोहम्म्द अब्दुल ग़फ़ूर शहबाज़
शेर
मैं वो शैदा-ए-गेसू हूँ कि अक्सर मौसम-ए-गुल में
मिरा पा-ए-नज़र पड़ता है ज़ंजीर-ए-गुलिस्ताँ पर
मुंशी खैराती लाल शगुफ़्ता
शेर
ज़ुल्फ़-ए-सुम्बुल निकहत-ए-गुल मौज-ए-सब्ज़ा मौज-ए-आब
बाग़ में कोई जगह ख़ाली न देखी दाम से
जलील मानिकपूरी
शेर
कैफ़ियत महफ़िल-ए-ख़ूबाँ की न उस बिन पूछो
उस को देखूँ न तो फिर दे मुझे दिखलाई क्या