aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "निशाना-ए-रश्क-ओ-हसद"
क्या पूछते हो नाम-ओ-निशान-ए-मुसाफ़िराँहिन्दोस्ताँ में आए हैं हिन्दोस्तान के थे
कोई रश्क-ए-हुस्न-ए-तमाम था वही क़द्द-ओ-क़ामत-ए-सर्व सावही बर्क़ जिस का बयाँ हो क्या जो गिरी तो दिल में उतर गई
घर मिरे शब को जो वो रश्क-ए-क़मर आ निकलाहो गए परतव-ए-रुख़ से दर ओ दीवार सफ़ेद
मैं अब्र-ओ-बाद से तूफ़ाँ से सब से डरता हूँग़रीब-ए-शहर हूँ काग़ज़ के घर में रहता हूँ
जब देखो हूँ उस को तो मुझे आता है ये रश्ककिस किस का ये मंज़ूर-ए-नज़र होवेगा यारब
वो मक़ामात-ए-मुक़द्दस वो तिरे गुम्बद ओ क़ौसऔर मिरा ऐसे निशानात का ज़ाएर होना
ओ वस्ल में मुँह छुपाने वालेये भी कोई वक़्त है हया का
गुलज़ार-ए-हस्त-ओ-बूद न बेगाना-वार देखहै देखने की चीज़ इसे बार बार देख
ये अदाएँ ये इशारे ये हसीं क़ौल-ओ-क़रारकितने आदाब के पर्दे में है इंकार की बात
मकान-ए-ज़र लब-ए-गोया हद-ए-सिपेह्र-ओ-ज़मींदिखाई देता है सब कुछ यहाँ ख़ुदा के सिवा
यूँ ख़ुश न हो ऐ शहर-ए-निगाराँ के दर ओ बामये वादी-ए-सफ़्फ़ाक भी रहने की नहीं है
रुक गया आ के जहाँ क़ाफ़िला-ए-रंग-ओ-नशातकुछ क़दम आगे ज़रा बढ़ के मकाँ है मेरा
ज़रा नक़ाब-ए-हसीं रुख़ से तुम उलट देनाहम अपने दीदा-ओ-दिल का ग़ुरूर देखेंगे
जब किसी सूरत नहीं है मुझ को एहसास-ए-वजूदफिर मिरे किस काम का है ये जहान-ए-हस्त-ओ-बूद
हस्ती का राज़ क्या है ग़म-ए-हस्त-ओ-बूद हैआलम तमाम दाम-ए-रुसूम-ओ-क़़ुयूद है
पहले से मरासिम न सही फिर भी कभी तोरस्म-ओ-रह-ए-दुनिया ही निभाने के लिए आ
कुछ हम को इम्तियाज़ नहीं साफ़ ओ दुर्द काऐ साक़ियान-ए-बज़्म बयारीद हरचे हस्त
ये मंसब-ए-बुलंद मिला जिस को मिल गयाहर मुद्दई के वास्ते दार-ओ-रसन कहाँ
कितने हाथों ने तराशे ये हसीं ताज-महलझाँकते हैं दर-ओ-दीवार से क्या क्या चेहरे
आ बसे कितने नए लोग मकान-ए-जाँ मेंबाम-ओ-दर पर है मगर नाम उसी का लिक्खा
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