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शेर
अब दिलों में कोई गुंजाइश नहीं मिलती 'हयात'
बस किताबों में लिक्खा हर्फ़-ए-वफ़ा रह जाएगा
हयात लखनवी
शेर
बद-क़िस्मतों को गर हो मयस्सर शब-ए-विसाल
सूरज ग़ुरूब होते ही ज़ाहिर हो नूर-ए-सुब्ह
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
शेर
बुतों में नूर-ए-ज़ात-ए-किब्रिया मालूम होता है
मुझे कुछ दिन से हर पत्थर ख़ुदा मालूम होता है
मुज़्तर ख़ैराबादी
शेर
अल्लाह अल्लाह ये हंगामा-ए-पैकार-ए-हयात
अब वो आवाज़ भी देते हैं तो सुनते नहीं हम
सय्यद नवाब अफ़सर लखनवी
शेर
ज़हर पी कर भी यहाँ किस को मिली ग़म से नजात
ख़त्म होता है कहीं सिलसिला-ए-रक़्स-ए-हयात
ख़लील-उर-रहमान आज़मी
शेर
लोगों को अपनी फ़िक्र है लेकिन मुझे नदीम
बज़्म-ए-हयात-ओ-नज़्म-ए-गुलिस्ताँ की फ़िक्र है