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शेर
मता-ए-लौह-ओ-क़लम छिन गई तो क्या ग़म है
कि ख़ून-ए-दिल में डुबो ली हैं उँगलियाँ मैं ने
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
शेर
सुकून-ए-दिल जहान-ए-बेश-ओ-कम में ढूँडने वाले
यहाँ हर चीज़ मिलती है सुकून-ए-दिल नहीं मिलता
जगन्नाथ आज़ाद
शेर
कल बज़्म में सब पर निगह-ए-लुतफ़-ओ-करम थी
इक मेरी तरफ़ तू ने सितमगार न देखा
शैख़ मोहम्मद रोशन जोशिश लखनवी
शेर
इज्तिबा रिज़वी
शेर
इज्तिबा रिज़वी
शेर
माना कि मुश्त-ए-ख़ाक से बढ़ कर नहीं हूँ मैं
लेकिन हवा के रहम-ओ-करम पर नहीं हूँ मैं
मुज़फ़्फ़र वारसी
शेर
बेश ओ कम का शिकवा साक़ी से 'मुबारक' कुफ़्र था
दौर में सब के ब-क़द्र-ए-ज़र्फ़ पैमाना रहा
मुबारक अज़ीमाबादी
शेर
मिरा चाक-ए-गिरेबाँ चाक-ए-दिल से मिलने वाला है
मगर ये हादसे भी बेश ओ कम होते ही रहते हैं
अज़ीज़ हामिद मदनी
शेर
ज़ो'म-ए-तुक़ा हिजाब-ए-तज़ाहुर निफ़ाक़ का
हर जा रक़म है इस में भी इज़्न ओ क़ुम-ए-दरोग़
अख़लाक़ अहमद आहन
शेर
मुबारक दैर-ओ-का'बा हों 'क़लक़' शैख़-ओ-बरहमन को
बिछाएँगे मुसल्ला चल के हम मेहराब-ए-अबरू में
असद अली ख़ान क़लक़
शेर
पर्दा-ए-लुत्फ़ में ये ज़ुल्म-ओ-सितम क्या कहिए
हाए ज़ालिम तिरा अंदाज़-ए-करम क्या कहिए