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शेर
किसी के जिस्म-ओ-जाँ छलनी किसी के बाल-ओ-पर टूटे
जली शाख़ों पे यूँ लटके कबूतर देख आया हूँ
अता आबिदी
शेर
वामिक़ जौनपुरी
शेर
निगाह-ए-शौक़ से लाखों बना डाले हैं दर हम ने
क़फ़स में भी नहीं मानी शिकस्त-ए-बाल-ओ-पर हम ने