आपकी खोज से संबंधित
परिणाम "पेच-ओ-ख़म"
शेर के संबंधित परिणाम "पेच-ओ-ख़म"
शेर
हमारे सर पे पेच-ओ-ख़म का ये साफ़ा विरासत है
कि तुम पगड़ी समझते हो जिसे हम ताज कहते हैं
अतीब क़ादरी
शेर
'हबीब' इस ज़िंदगी के पेच-ओ-ख़म से हम भी नालाँ हैं
हमें झूटे नगीनों की चमक भाती नहीं शायद
हबीब हैदराबादी
शेर
कमर बाँधो मुक़द्दर के सहारे बैठने वालो
शिकस्त-ए-रज़्म से राहों का पेच-ओ-ख़म न बदलेगा
सय्यद बासित हुसैन माहिर लखनवी
शेर
मिरी आरज़ू की तस्कीं न करम में ने सितम में
मिरा दिल मुदाम तिश्ना तिरी रह के पेच-ओ-ख़म में
अख़्तर ओरेनवी
शेर
ज़ात-ए-ख़ाकी की तहों में ख़ुफ़्ता हैं अनवा'-ए-ख़ाक
रंगहा-ए-तह-ब-तह का पेच-ओ-ख़म कुछ और है
अख़लाक़ अहमद आहन
शेर
ख़त्म करना चाहता हूँ पेच-ओ-ताब-ए-ज़िंदगी
याद-ए-गेसू ज़ोर-ए-बाज़ू बन मिरे शाने में आ
नातिक़ गुलावठी
शेर
कुछ न देखा फिर ब-जुज़ यक शोला-ए-पुर-पेच-ओ-ताब
शम्अ' तक तो हम ने देखा था कि परवाना गया
मीर तक़ी मीर
शेर
पर्दे में वो तो छुप गए दिखला के इक झलक
मैं पेच-ओ-ताब में रहा दिन भर तमाम रात