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शेर
जवानो नज़्र दे दो अपने ख़ून-ए-दिल का हर क़तरा
लिखा जाएगा हिन्दोस्तान को फ़रमान-ए-आज़ादी
नाज़िश प्रतापगढ़ी
शेर
ताब-ओ-ताक़त रहे क्या ख़ाक कि आज़ा के तईं
हाकिम-ए-ज़ोफ़ से फ़रमान-ए-तग़ईरी आया
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
शेर
तस्कीन-ए-दिल-ए-महज़ूँ न हुई वो सई-ए-करम फ़रमा भी गए
इस सई-ए-करम को क्या कहिए बहला भी गए तड़पा भी गए
असरार-उल-हक़ मजाज़
शेर
जिस की ख़ातिर सभी रिश्तों से हुआ था मुंकिर
अब सुना है कि वही शख़्स ख़फ़ा है मुझ से
फ़रहान हनीफ़ वारसी
शेर
किसी ने बर्छियाँ मारीं किसी ने तीर मारे हैं
ख़ुदा रक्खे इन्हें ये सब करम-फ़रमा हमारे हैं
मुबारक अज़ीमाबादी
शेर
अभी से सुब्ह-ए-गुलशन रक़्स-फ़रमा है निगाहों में
अभी पूरी नक़ाब उल्टी नहीं है शाम-ए-सहरा ने
परवेज़ शाहिदी
शेर
हमारी महफ़िलों में बे-हिजाब आने से क्या होगा
नहीं जब होश में हम जल्वा फ़रमाने से क्या होगा