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शेर
ढूँढता फिरता है मुझ को क्यूँ फ़रेब-ए-रंग-ओ-बू
मैं वहाँ हूँ ख़ुद जहाँ अपना पता मिलता नहीं
अब्दुल्लतीफ़ शौक़
शेर
फ़रेब-ए-माह-ओ-अंजुम से निकल जाएँ तो अच्छा है
ज़रा सूरज ने करवट ली ये तारे डूब जाएँगे
अली अकबर अब्बास
शेर
हाए ये हुस्न-ए-तसव्वुर का फ़रेब-ए-रंग-ओ-बू
मैं ये समझा जैसे वो जान-ए-बहार आ ही गया
जिगर मुरादाबादी
शेर
कहानी है तो इतनी है फ़रेब-ए-ख़्वाब-ए-हस्ती की
कि आँखें बंद हूँ और आदमी अफ़्साना हो जाए