aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "फ़ानी"
हर नफ़स उम्र-ए-गुज़िश्ता की है मय्यत 'फ़ानी'ज़िंदगी नाम है मर मर के जिए जाने का
ना-उमीदी मौत से कहती है अपना काम करआस कहती है ठहर ख़त का जवाब आने को है
सुने जाते न थे तुम से मिरे दिन रात के शिकवेकफ़न सरकाओ मेरी बे-ज़बानी देखते जाओ
इक मुअम्मा है समझने का न समझाने काज़िंदगी काहे को है ख़्वाब है दीवाने का
हर मुसीबत का दिया एक तबस्सुम से जवाबइस तरह गर्दिश-ए-दौराँ को रुलाया मैं ने
दिल सरापा दर्द था वो इब्तिदा-ए-इश्क़ थीइंतिहा ये है कि 'फ़ानी' दर्द अब दिल हो गया
दुनिया मेरी बला जाने महँगी है या सस्ती हैमौत मिले तो मुफ़्त न लूँ हस्ती की क्या हस्ती है
आते हैं अयादत को तो करते हैं नसीहतअहबाब से ग़म-ख़्वार हुआ भी नहीं जाता
ज़िक्र जब छिड़ गया क़यामत काबात पहुँची तिरी जवानी तक
मौत का इंतिज़ार बाक़ी हैआप का इंतिज़ार था न रहा
न इब्तिदा की ख़बर है न इंतिहा मालूमरहा ये वहम कि हम हैं सो वो भी क्या मालूम
आबादी भी देखी है वीराने भी देखे हैंजो उजड़े और फिर न बसे दिल वो निराली बस्ती है
कुछ कटी हिम्मत-ए-सवाल में उम्रकुछ उमीद-ए-जवाब में गुज़री
मौजों की सियासत से मायूस न हो 'फ़ानी'गिर्दाब की हर तह में साहिल नज़र आता है
जवानी को बचा सकते तो हैं हर दाग़ से वाइ'ज़मगर ऐसी जवानी को जवानी कौन कहता है
या-रब तिरी रहमत से मायूस नहीं 'फ़ानी'लेकिन तिरी रहमत की ताख़ीर को क्या कहिए
यूँ चुराईं उस ने आँखें सादगी तो देखिएबज़्म में गोया मिरी जानिब इशारा कर दिया
बहला न दिल न तीरगी-ए-शाम-ए-ग़म गईये जानता तो आग लगाता न घर को मैं
उस को भूले तो हुए हो 'फ़ानी'क्या करोगे वो अगर याद आया
तग़य्युरात के आलम में ज़िंदगानी हैशबाब फ़ानी नज़र फ़ानी हुस्न फ़ानी है
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