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शेर
जब कोई फ़ित्ना-ए-अय्याम नहीं होता है
ज़िंदगी का बड़ी मुश्किल से यक़ीं होता है
हबीब अहमद सिद्दीक़ी
शेर
गुल खिलाए न कहीं फ़ित्ना-ए-दौराँ कुछ और
आज-कल दौर-ए-मय-ओ-जाम से जी डरता है
अख़्तर अंसारी अकबराबादी
शेर
तिलिस्म-ए-ख़्वाब-ए-ज़ुलेख़ा ओ दाम-ए-बर्दा-फ़रोश
हज़ार तरह के क़िस्से सफ़र में होते हैं
अज़ीज़ हामिद मदनी
शेर
ख़ुशी मेरी गवारा थी न क़िस्मत को न दुनिया को
सो मैं कुछ ग़म बरा-ए-ख़ातिर-ए-अहबाब उठा लाई
हुमैरा राहत
शेर
मुज़्तर ख़ैराबादी
शेर
तो भी उस तक है रसाई मुझे एहसाँ दुश्वार
दाम लूँ गर पर-ए-जिब्रील बरा-ए-पर्वाज़