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शेर
ये बयान-ए-हाल ये गुफ़्तुगू है मिरा निचोड़ा हुआ लहू
अभी सुन लो मुझ से कि फिर कभू न सुनोगे ऐसी कहानियाँ
कलीम आजिज़
शेर
सुना किस ने हाल मेरा कि जूँ अब्र वो न रोया
रखे है मगर ये क़िस्सा असर-ए-दुआ-ए-बाराँ
बन्द्र इब्न-ए-राक़िम
शेर
हिज्र की रातों में लाज़िम है बयान-ए-ज़ुल्फ़-ए-यार
नींद तो जाती रही है क़िस्सा-ख़्वानी कीजिए
सिराज औरंगाबादी
शेर
और भी कितने तरीक़े हैं बयान-ए-ग़म के
मुस्कुराती हुई आँखों को तो पुर-नम न करो