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शेर
न इतना ज़ुल्म कर ऐ चाँदनी बहर-ए-ख़ुदा छुप जा
तुझे देखे से याद आता है मुझ को माहताब अपना
नज़ीर अकबराबादी
शेर
कहें हम बहर-ए-बे-पायान-ए-ग़म की माहियत किस से
न लहरों से कोई वाक़िफ़ न कोई थाह जाने है
शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम
शेर
तुम भी थे सरशार मैं भी ग़र्क-ए-बहर-ए-रंग-ओ-बू
फिर भला दोनों में आख़िर ख़ुद-कशीदा कौन था
अशअर नजमी
शेर
जिन्हें हम बुलबुला पानी का दिखते हैं कहो उन से
नज़र हो देखने वाली तो बहर-ए-बे-कराँ हम हैं
सदा अम्बालवी
शेर
बहन की इल्तिजा माँ की मोहब्बत साथ चलती है
वफ़ा-ए-दोस्ताँ बहर-ए-मशक़्कत साथ चलती है