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शेर
अगर कुछ रोज़ ज़िंदा रह के मर जाना मुक़द्दर है
तो इस दुनिया में आख़िर बाइस-ए-तख़्लीक़-ए-जाँ क्या था
जगत मोहन लाल रवाँ
शेर
तवज्जोह चारा-गर की बाइस-ए-तकलीफ़ है 'बेख़ुद'
इज़ाफ़ा है मुसीबत में दवाओं का असर करना
अब्बास अली ख़ान बेखुद
शेर
न दुनिया बाइ'स-ए-ग़फ़लत न उक़्बा वज्ह-ए-हुश्यारी
रहे जो तुझ से ग़ाफ़िल हम उसे ग़ाफ़िल समझते हैं
अमजद नजमी
शेर
फ़िक्र-ए-तामीर में हूँ फिर भी मैं घर की ऐ चर्ख़
अब तलक तू ने ख़बर दी नहीं सैलाब के तईं
क़ाएम चाँदपुरी
शेर
रंज-ओ-ग़म ठोकरें मायूसी घुटन बे-ज़ारी
मेरे ख़्वाबों की ये ता'बीर भी हो सकती है
अख़्तर शाहजहाँपुरी
शेर
घर की वीरानी को क्या रोऊँ कि ये पहले सी
तंग इतना है कि गुंजाइश-ए-ता'मीर नहीं