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शेर
ये तूफ़ान-ए-हवादिस और तलातुम बाद ओ बाराँ के
मोहब्बत के सहारे कश्ती-ए-दिल है रवाँ अब तक
वासिफ़ देहलवी
शेर
चलते हो तो चमन को चलिए कहते हैं कि बहाराँ है
पात हरे हैं फूल खिले हैं कम-कम बाद-ओ-बाराँ है
मीर तक़ी मीर
शेर
ऐ बाग़बाँ नहीं तिरे गुलशन से कुछ ग़रज़
मुझ से क़सम ले छेड़ूँ अगर बर्ग-ओ-बर कहीं
बन्द्र इब्न-ए-राक़िम
शेर
अज़ीज़ान-ए-वतन को ग़ुंचा ओ बर्ग ओ समर जाना
ख़ुदा को बाग़बाँ और क़ौम को हम ने शजर जाना
चकबस्त बृज नारायण
शेर
मता-ए-बर्ग-ओ-समर वही है शबाहत-ए-रंग-ओ-बू वही है
खुला कि इस बार भी चमन पर गिरफ़्त-ए-दस्त-ए-नुमू वही है
ग़ुलाम हुसैन साजिद
शेर
जिगर मुरादाबादी
शेर
चमन में इख़्तिलात-ए-रंग-ओ-बू से बात बनती है
हम ही हम हैं तो क्या हम हैं तुम ही तुम हो तो क्या तुम हो
सरशार सैलानी
शेर
ख़ुद मिरे आँसू चमक रखते हैं गौहर की तरह
मेरी चश्म-ए-आरज़ू में माह-ओ-अख़तर कुछ नहीं