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शेर
वो अब क्या ख़ाक आए हाए क़िस्मत में तरसना था
तुझे ऐ अब्र-ए-रहमत आज ही इतना बरसना था
कैफ़ी हैदराबादी
शेर
जो ठोकर ही नहीं खाते वो सब कुछ हैं मगर वाइज़
वो जिन को दस्त-ए-रहमत ख़ुद सँभाले और होते हैं
हरी चंद अख़्तर
शेर
अनवरी जहाँ बेगम हिजाब
शेर
उल्फ़त में तेरा रोना 'एहसाँ' बहुत बजा है
हर वक़्त मेंह का होना ये रहमत-ए-ख़ुदा है
अब्दुल रहमान एहसान देहलवी
शेर
अगर उर्यानी-ए-मजनूँ पे आता रहम लैला को
बना देती क़बा वो चाक कर के पर्दा महमिल का
मुनव्वर ख़ान ग़ाफ़िल
शेर
ज़ि-बस काफ़िर-अदायों ने चलाए संग-ए-बे-रहमी
अगर सब जम'अ करता मैं तो बुत-ख़ाने हुए होते
सिराज औरंगाबादी
शेर
सुपुर्द-ए-आब यूँ ही तो नहीं करता हूँ ख़ाक अपनी
अजब मिट्टी के घुलने का मज़ा बारिश में रहता है
अरशद जमाल सारिम
शेर
दोस्तों से दुश्मनी और दुश्मनों से दोस्ती
बे-मुरव्वत बेवफ़ा बे-रहम ये क्या ढंग है
शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम
शेर
अब के हम ने भी दिया तर्क-ए-तअ'ल्लुक़ का जवाब
होंट ख़ामोश रहे आँख ने बारिश नहीं की