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शेर
बे-इश्क़ जितनी ख़ल्क़ है इंसाँ की शक्ल में
नज़रों में अहल-ए-दीद के आदम ये सब नहीं
वलीउल्लाह मुहिब
शेर
मुझ को काफ़ी है बस इक तेरा मुआफ़िक़ होना
सारी दुनिया भी मुख़ालिफ़ हो तो क्या होता है
रंजूर अज़ीमाबादी
शेर
जहाँ में थी बस इक अफ़्वाह तेरे जल्वों की
चराग़-ए-दैर-ओ-हरम झिलमिलाए हैं क्या क्या
फ़िराक़ गोरखपुरी
शेर
बस इक तुम ही नहीं मंज़र में वर्ना क्या नहीं है
सुराही चाँद तारे तितलियाँ जुगनू परिंदे
ज़फ़र ख़ान नियाज़ी
शेर
अपना आप पड़ा रह जाता है बस इक अंदाज़े पर
आधे हम इस धरती पर हैं आधे उस सय्यारे पर
राना आमिर लियाक़त
शेर
सादिक़ से बस इक आन में हो जावे तू काज़िब
दिखलाऊँ अगर तुझ को मैं उस ज़ुल्फ़ का ख़म सुब्ह
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
शेर
बस इक ख़ाना-बदोशी है कि अब तक साथ है अपने
तअ'य्युश है तसव्वुर में भी अब कोई मकाँ रखना