aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "भाड़"
आँखें कहीं दिमाग़ कहीं दस्त ओ पा कहींरस्तों की भीड़-भाड़ में दुनिया बिखर गई
मिरी तन्हाई मुझ से कहती हैभाड़ में जाए भीड़ आओ इधर
कौन इस घर की देख-भाल करेरोज़ इक चीज़ टूट जाती है
फूल गुल शम्स ओ क़मर सारे ही थेपर हमें उन में तुम्हीं भाए बहुत
भाँप ही लेंगे इशारा सर-ए-महफ़िल जो कियाताड़ने वाले क़यामत की नज़र रखते हैं
दिल की बिसात क्या थी निगाह-ए-जमाल मेंइक आईना था टूट गया देख-भाल में
सफ़र में धूप तो होगी जो चल सको तो चलोसभी हैं भीड़ में तुम भी निकल सको तो चलो
फिर खो न जाएँ हम कहीं दुनिया की भीड़ मेंमिलती है पास आने की मोहलत कभी कभी
हर शख़्स दौड़ता है यहाँ भीड़ की तरफ़फिर ये भी चाहता है उसे रास्ता मिले
मिरी ख़्वाहिश है कि आँगन में न दीवार उठेमिरे भाई मिरे हिस्से की ज़मीं तू रख ले
आशिक़ का ख़त है पढ़ना ज़रा देख-भाल केकाग़ज़ पे रख दिया है कलेजा निकाल के
भीड़ तन्हाइयों का मेला हैआदमी आदमी अकेला है
चुप-चाप बैठे रहते हैं कुछ बोलते नहींबच्चे बिगड़ गए हैं बहुत देख-भाल से
मुश्किल बहुत पड़ेगी बराबर की चोट हैआईना देखिएगा ज़रा देख-भाल के
शहर की इस भीड़ में चल तो रहा हूँज़ेहन में पर गाँव का नक़्शा रखा है
दिल में वो भीड़ है कि ज़रा भी नहीं जगहआप आइए मगर कोई अरमाँ निकाल के
इक शक्ल हमें फिर भाई है इक सूरत दिल में समाई हैहम आज बहुत सरशार सही पर अगला मोड़ जुदाई है
भीड़ के ख़ौफ़ से फिर घर की तरफ़ लौट आयाघर से जब शहर में तन्हाई के डर से निकला
किस को कहिए नेक और ठहराइए किस को बुराग़ौर से देखा तो सब अपने ही भाई-बंद हैं
रोती हुई एक भीड़ मिरे गिर्द खड़ी थीशायद ये तमाशा मिरे हँसने के लिए था
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