aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "मक़्ता-ए-सिलसिला-ए-शौक़"
मर के टूटा है कहीं सिलसिला-ए-क़ैद-ए-हयातमगर इतना है कि ज़ंजीर बदल जाती है
तेरा ही रक़्स सिलसिला-ए-अक्स-ए-ख़्वाब हैइस अश्क-ए-नीम-शब से शब-ए-माहताब तक
वो बुलाते तो हैं मुझ को मगर ऐ जज़्बा-ए-दिलशौक़ इतना भी न बढ़ जाए कि जाए न बने
दास्तान-ए-शौक़ कितनी बार दोहराई गईसुनने वालों में तवज्जोह की कमी पाई गई
जहाँ में हो गई ना-हक़ तिरी जफ़ा बदनामकुछ अहल-ए-शौक़ को दार-ओ-रसन से प्यार भी है
महव-ए-दीद-ए-चमन-ए-शौक़ है फिर दीदा-ए-शौक़गुल-ए-शादाब वही बुलबुल-ए-शैदा है वही
जज़्बा-ए-बे-इख़्तियार-ए-शौक़ देखा चाहिएसीना-ए-शमशीर से बाहर है दम शमशीर का
लज़्ज़त-ए-सज्दा-हा-ए-शौक़ न पूछहाए वो इत्तिसाल-ए-नाज़-ओ-नियाज़
अल्लाह-रे तेरे सिलसिला-ए-ज़ुल्फ़ की कशिशजाता है जी उधर ही खिंचा काएनात का
आँखों में नहीं सिलसिला-ए-अश्क शब-ओ-रोज़तस्बीह पढ़ा करते हैं दिन रात तुम्हारी
दीदनी है ये सरासीमगी-ए-दीदा-ए-शौक़कि तिरे दर पे खड़े हैं तिरा दर याद नहीं
मुसाफ़िरान-ए-रह-ए-शौक़ सुस्त-गाम हो क्यूँक़दम बढ़ाए हुए हाँ क़दम बढ़ाए हुए
अगर हंगामा-हा-ए-शौक़ से है ला-मकाँ ख़ालीख़ता किस की है या रब ला-मकाँ तेरा है या मेरा
ख़ीरा-सरान-ए-शौक़ का कोई नहीं है जुम्बा-दारशहर में इस गिरोह ने किस को ख़फ़ा नहीं किया
बे-ख़ुद-ए-शौक़ हूँ आता है ख़ुदा याद मुझेरास्ता भूल के बैठा हूँ सनम-ख़ाने का
न रही बे-ख़ुदी-ए-शौक़ में इतनी भी ख़बरहिज्र अच्छा है कि 'महरूम' विसाल अच्छा है
पा-ब-गिल बे-ख़ुदी-ए-शौक़ से मैं रहता थाकूचा-ए-यार में हालत मिरी दीवार की थी
निय्यत-ए-शौक़ भर न जाए कहींतू भी दिल से उतर न जाए कहीं
निगाह-ए-शौक़ अगर दिल की तर्जुमाँ हो जाएतो ज़र्रा ज़र्रा मोहब्बत का राज़-दाँ हो जाए
ढूँढती है इज़्तिराब-ए-शौक़ की दुनिया मुझेआप ने महफ़िल से उठवा कर कहाँ रक्खा मुझे
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