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शेर
किसी मग़रूर के आगे हमारा सर नहीं झुकता
फ़क़ीरी में भी 'अख़्तर' ग़ैरत-ए-शाहाना रखते हैं
अख़्तर शीरानी
शेर
अभी तकमील-ए-उल्फ़त पर न दिल मग़रूर हो जाए
ये मंज़िल वो है जितनी तय हो उतनी दूर हो जाए
इज़हार रामपुरी
शेर
शैख़ मग़रूर है इस्लाम पे क्या साथ अपने
तेरी तस्बीह तो ज़ुन्नार लिए फिरती है
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
शेर
शैख़ इस बुत-शिकनी पर न हो इतना मग़रूर
तू ने तोड़ा नहीं अपना बुत-ए-पिंदार हनूज़
शेख़ ग़ुलाम अली रासिख़
शेर
न वो सूरत दिखाते हैं न मिलते हैं गले आ कर
न आँखें शाद होतीं हैं न दिल मसरूर होता है