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शेर
कैफ़ियत महफ़िल-ए-ख़ूबाँ की न उस बिन पूछो
उस को देखूँ न तो फिर दे मुझे दिखलाई क्या
जुरअत क़लंदर बख़्श
शेर
निगाहें जोड़ और आँखें चुरा टुक चल के फिर देखा
मिरे चेहरे उपर की शाह-ए-ख़ूबाँ ने नज़र सानी
शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम
शेर
वहाँ ज़ेर-ए-बहस आते ख़त-ओ-ख़ाल ओ ख़ू-ए-ख़ूबाँ
ग़म-ए-इश्क़ पर जो 'अनवर' कोई सेमिनार होता
अनवर मसूद
शेर
क़ैसर ख़ालिद
शेर
ग़म-ए-दौराँ ग़म-ए-जानाँ का निशाँ है कि जो था
वस्फ़-ए-ख़ूबाँ ब-हदीस-ए-दिगराँ है कि जो था
सय्यद आबिद अली आबिद
शेर
भरे हैं तुझ में वो लाखों हुनर ऐ मजमा-ए-ख़ूबी
मुलाक़ाती तिरा गोया भरी महफ़िल से मिलता है
दाग़ देहलवी
शेर
तेरे कूचे से सफ़र मैं ने किया था जिस दिन
थे मिरे साथ मिरे दीदा-ए-ख़ूँ-बार और बस