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शेर
जब भी मैं ने खोल कर देखी है यादों की किताब
यूँही सफ़्हों पर तड़पते मिल गए कुछ वाक़िआ'त
मरयम ग़ज़ाला
शेर
कर के ज़ख़्मी तू मुझे सौंप गया ग़ैरों को
कौन रक्खेगा मिरे ज़ख़्म पे मरहम तुझ बिन