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शेर
हम-दिगर मोमिन को है हर बज़्म में तकफ़ीर-ए-जंग
नेक सुल्ह-ए-कुल है बद है बा-जवान-ओ-पीर-ए-जंग
वलीउल्लाह मुहिब
शेर
अज़ाबों से टपकती ये छतें बरसों चलेंगी
अभी से क्यूँ मकीं मसरूफ़-ए-मातम हो गए हैं
मुसव्विर सब्ज़वारी
शेर
दिल के आईने की हम लेते हैं तब है है ख़बर
इस पे जब दो दो वजब ये ज़ंग-ए-ग़म चढ़ जाए है
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
शेर
गुज़शता साल भी 'अशरफ़' यही उम्मीद थी हम को
कि ये जो साल आया है ख़ुशी की घड़ियाँ लाएगा
मीम मारूफ़ अशरफ़
शेर
रिश्ता-ए-उल्फ़त रग-ए-जाँ में बुतों का पड़ गया
अब ब-ज़ाहिर शग़्ल है ज़ुन्नार का फ़े'अल-ए-अबस