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शेर
कौन सानी शहर में इस मेरे मह-पारे का है
चाँद सी सूरत दुपट्टा सर पे यक-तारे का है
अब्दुल रहमान एहसान देहलवी
शेर
रूह की गहराई में पाता हूँ पेशानी के ज़ख़्म
सिर्फ़ चाहा ही नहीं मैं ने उसे पूजा भी है
अख़्तर होशियारपुरी
शेर
तिरे जुज़्व जुज़्व ख़याल को रग-ए-जाँ में पूरा उतार कर
वो जो बार बार की शक्ल थी उसे एक बार बना दिया