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शेर
माज़ी-ए-मरहूम की नाकामियों का ज़िक्र छोड़
ज़िंदगी की फ़ुर्सत-ए-बाक़ी से कोई काम ले
सीमाब अकबराबादी
शेर
वो माज़ी जो है इक मजमुआ अश्कों और आहों का
न जाने मुझ को इस माज़ी से क्यूँ इतनी मोहब्बत है
अख़्तर अंसारी
शेर
हँसी में कटती थीं रातें ख़ुशी में दिन गुज़रता था
'कँवल' माज़ी का अफ़्साना न तुम भूले न हम भूले
कँवल डिबाइवी
शेर
जहाँ से हूँ यहाँ आया वहाँ जाऊँगा आख़िर को
मिरा ये हाल है यारो न मुस्तक़बिल न माज़ी हूँ
मातम फ़ज़ल मोहम्मद
शेर
माज़ी के समुंदर में अक्सर यादों के जज़ीरे मिलते हैं
फिर आओ वहीं लंगर डालें फिर आओ उन्हें आबाद करें