aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "मारते"
जो आए हश्र में वो सब को मारते आएजिधर निगाह फिरी चोट पर लगाई चोट
मरते हैं आरज़ू में मरने कीमौत आती है पर नहीं आती
फिर उसी बेवफ़ा पे मरते हैंफिर वही ज़िंदगी हमारी है
क़ुबूल कैसे करूँ उन का फ़ैसला कि ये लोगमिरे ख़िलाफ़ ही मेरा बयान माँगते हैं
पत्थर तो हज़ारों ने मारे थे मुझे लेकिनजो दिल पे लगा आ कर इक दोस्त ने मारा है
किस पे मरते हो आप पूछते हैंमुझ को फ़िक्र-ए-जवाब ने मारा
जो दोस्त हैं वो माँगते हैं सुल्ह की दुआदुश्मन ये चाहते हैं कि आपस में जंग हो
आसमानों से फ़रिश्ते जो उतारे जाएँवो भी इस दौर में सच बोलें तो मारे जाएँ
तलब करें तो ये आँखें भी इन को दे दूँ मैंमगर ये लोग इन आँखों के ख़्वाब माँगते हैं
अपनी इस आदत पे ही इक रोज़ मारे जाएँगेकोई दर खोले न खोले हम पुकारे जाएँगे
शहर में अपने ये लैला ने मुनादी कर दीकोई पत्थर से न मारे मिरे दीवाने को
आईना देख के ये देख सँवरने वालेतुझ पे बेजा तो नहीं मरते ये मरने वाले
नेकी इक दिन काम आती है हम को क्या समझाते होहम ने बे-बस मरते देखे कैसे प्यारे प्यारे लोग
मैं ख़ुद को मरते हुए देख कर बहुत ख़ुश हूँये डर भी है कि मिरी आँख खुल न जाए कहीं
सभी अंदाज़-ए-हुस्न प्यारे हैंहम मगर सादगी के मारे हैं
सुबूत माँगते हैं वो मिरी वफ़ा का 'जलाल'हर इक से तर्क-ए-तअ'ल्लुक़ किया है जिन के लिए
ज़ब्त देखो उधर निगाह न कीमर गए मरते मरते आह न की
अब मुझे मानें न मानें ऐ 'हफ़ीज़'मानते हैं सब मिरे उस्ताद को
मौत अंजाम-ए-ज़िंदगी है मगरलोग मरते हैं ज़िंदगी के लिए
नई फ़ज़ा के परिंदे हैं कितने मतवालेकि बाल-ओ-पर से भी पहले उड़ान माँगते हैं
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