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शेर
ख़ुदा और नाख़ुदा मिल कर डुबो दें ये तो मुमकिन है
मेरी वज्ह-ए-तबाही सिर्फ़ तूफ़ाँ हो नहीं सकता
सीमाब अकबराबादी
शेर
बसान-ए-नक़्श-ए-क़दम तेरे दर से अहल-ए-वफ़ा
उठाते सर नहीं हरगिज़ तबाह के मारे
मिर्ज़ा जवाँ बख़्त जहाँदार
शेर
जब नबी-साहिब में कोह-ओ-दश्त से आई बसंत
कर के मुजरा शाह-ए-मर्दां की तरफ़ धाई बसंत
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
शेर
इरादा फिर किसी से कर लिया उस ने मोहब्बत का
सो अब ये देखना है कौन है ज़द में तबाही के
मीम मारूफ़ अशरफ़
शेर
ये बुज़ुर्गों की रवा-दारी के पज़-मुर्दा गुलाब
आबियारी चाहते हैं इन में चिंगारी न रख