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शेर
दूसरों का दर्द 'अख़्तर' मेरे दिल का दर्द है
मुब्तला-ए-ग़म है दुनिया और मैं ग़म-ख़्वार हूँ
अख़्तर अंसारी
शेर
नाम से तेरे जो रौशन मतला-ए-दीवाँ हुआ
हर वरक़ ख़ुर्शीद का मानिंद-ए-नूर अफ़्शाँ हुआ
राजा जिया लाल बहादुर गुलशन
शेर
क्या इसी ने ये किया मतला-ए-अबरू मौज़ूँ
तुम जो कहते हो सुख़न-गो है बड़ी मेरी आँख
ख़्वाज़ा मोहम्मद वज़ीर
शेर
मिरी ज़िंदगी की ज़ीनत हुई आफ़त-ओ-बला से
मैं वो ज़ुल्फ़-ए-ख़म-ब-ख़म हूँ जो सँवर गई हवा से